किसी मौसम का झोंका था - रेनकोट फ़िल्म से  

Posted by: कुश in

रितुपर्णो घोष की अजय देवगन और ऐश्वर्या राय को लेकर बनाई फिल्म रेनकोट मुझे बेहद पसंद है और इसकी एक खास वजह इसका संगीत भी है.. यू तो रेनकोट फिल्म के सारे गीत खुद रितुपर्णो घोष ने ही लिखे है.. पर इसके एक गाने में गुलज़ार साहब की आवाज़ में उनकी पढ़ी हुई एक नज़्म भी है.. किसी मौसम का झोंका था..

गीत है पिया तोरा कैसा अभिमान... जितने खूबसूरत इसके बोल है उतनी ही मधुरता शुभा मुदगल जी ने इसे गाकर प्रदान की है.. ऋतपर्णो घोष गुलज़ार साहब को 'गुलज़ार भाई' कहते है.. और उनकी खास फरमाइश पर गुलज़ार साहब ने खुद अपनी लिखी नज़्म को अपनी आवाज़ दी है..
आप पढ़िए इस एक और बेजोड़ नज़्म को. और सुनिए खुद गुलज़ार साहब की आवाज़ में..

एक बार सुनने के बाद खुद आपको लगेगा की ये गीत सुन ना आपके लिए कितना ज़रूरी था..



किसी मौसम का झोंका था,
जो इस दीवार पर लटकी हुइ तस्वीर तिरछी कर गया है
गये सावन में ये दीवारें यूँ सीली नहीं थीं
ना जाने इस दफा क्यूँ इनमे सीलन आ गयी है
दरारें पड़ गयी हैं और सीलन इस तरह बैठी है
जैसे खुश्क रुक्सारों पे गीले आसूं चलते हैं

ये बारिश गुनगुनाती थी इसी छत की मुंडेरों पर
ये बारिश गुनगुनाती थी इसी छत की मुंडेरों पर
ये घर कि खिड़कीयों के कांच पर उंगली से लिख जाती थी सन्देशे
देखती रहती है बैठी हुई अब, बंद रोशंदानों के पीछे से

दुपहरें ऐसी लगती हैं, जैसे बिना मोहरों के खाली खाने रखे हैं,
ना कोइ खेलने वाला है बाज़ी, और ना कोई चाल चलता है,

ना दिन होता है अब ना रात होती है, सभी कुछ रुक गया है,
वो क्या मौसम का झोंका था, जो इस दीवार पर लटकी हुइ तस्वीर तिरछी कर गया है

This entry was posted on Sunday, April 27, 2008 and is filed under . You can leave a response and follow any responses to this entry through the Subscribe to: Post Comments (Atom) .

3 comments

मेरे मोबाइल मे ये गाना फीड है ओर गाड़ी चलाते ओर कभी कभार इसको इतना सुनता हूँ की मेरा बेटा भी इसके कुछ शब्द गुन्गानाने लगा है....वाकई बेहद खूबसूरत नज्म है......

कुश जॊ पुछते हे प्यार कया हे उन्हे यह फ़िल्म जरुर देखनी चाहिये,मेरी पसंद की फ़िल्मो मे एक यह भी हे, अति उतम ओर साफ़ सुथरी फ़िल्म ओर सभी का काम भी अच्छा हे, ओर इस गीत के लिये धन्यवाद

I really love these lines...thanks for posting them..!!

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