गुलज़ार साहब की नज्मों में sound का कमाल  

Posted by: Piyush k Mishra

आइए आज बात करते हैं गुलज़ार साब के गीतों में साउंड के कमाल की.अक्सर कई गीतों में गुलज़ार साब ने ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है जो श्रोता को चकित कर देते हैं.जैसे की उन्होने कोई जाल बुना हो और हम उसमें बहुत आसानी से फँस जाते हैं.दो अलग अलग शब्द जिनका साउंड बिल्कुल एक तरह होता है और वो प्रयोग भी इस तरह किए जा सकते हैं की कुछ अच्छा ही अर्थ निकले गीत का...गुलज़ार साब ने अक्सर ही ऐसा किया है.इसे हम गुलज़ार का तिलिस्म भी कह सकते हैं.

अब खट्टा मीठा फिल्म के एक गीत को लीजिए जिसमें वो कहते हैं-
तुमसे मिला था प्यार अच्छे नसीब थे
हम उन दिनों अमीर थे जब तुम करीब थे

चलते फिरते अगर ये गीत सुना जाए तो कोई आश्चर्या नहीं होगा की करीब को ग़रीब सुन लिया जाए.ये ज़रूर है की इसका अर्थ थोड़ा कमज़ोर हो जाता है मगर ये तो इंसान की फ़ितरत है की जब अमीर शब्द आता है हम खुद बा खुद मान लेते हैं की अब ग़रीब आएगा और उसी मानसिक स्थिति में करीब को ग़रीब सुन भी लेते हैं.
मरासिम एलबम की एक ग़ज़ल है -

हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते.....

इसके बीच एक शेर आता है-
शहड़ जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालों के लिए दिल नहीं थोड़ा करते
कितना आसान है दूसरे मिसरे में थोड़ा को तोड़ा सुन लेना.और उसका मतलब भी बिल्कुल सटीक बैठता है.मगर यही जादू है गुलज़ार साब की कलम का.साउंड का कमाल.
इसी एलबम की एक दूसरी ग़ज़ल है-
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है

इसके बीच एक शेर कुछ यूँ आता है-
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
एक तसलीम लाजमी सी है
दूसरे मिसरे में ना जाने क्यूँ तसलीम.तस्वीर की तरह सुनाई पड़ता है.और मेघना गुलज़ार,गुलज़ार साब की बेटी ने इसका वीडियो बनाया है उसमें भी बिल्कुल इसी जगह एक तस्वीर दिखाई जाती है.तस्वीर से मतलब बदल ज़रूर जाता है मगर बिगड़ता नहीं.

फिल्म सत्या का एक गीत है-
गीला गीला पानी...पानी सुरीला पानी
नि पा पा नि
साउंड का कितना ज़बरदस्त प्रयोग.चूँकि पात्र एक संगीतकार है तो वो बारिश की बूँदों में भी संगीत ढूँढ लेती है और इस भाव को बहुत सटीक तरीके से बयान किया है गुलज़ार साब ने.सप्तक के सुरों के द्वारा.

फिल्म जान-ए-मन का गीत है-
जाने की जाने ना
माने की माने ना
मन जाने जाने मन
पिया मन जाने ना
अब यहाँ तो कुछ कहने की ज़रूरत भी नहीं.मन जाने-जाने मन.वाह साहब.कमाल है बिल्कुल.

फिल्म झूम बराबर झूम का गीत- टिकट टू हॉलीवुड के बीच में एक पंक्ति आती है-
शहर के उस मोड़ से
जहाँ से तू पास हो
कहे मैं ज़िंदगी भर वहीं पे रूकू

यहाँ का जाल देखिए.दूसरी पंक्ति-जहाँ से तू पास हो..अगर इसे अँग्रेज़ी का पास मानें टू भी मज़ा है और हिन्दी का पास मानें टू भी मज़ा है.एक तीर दो शिकार..गुलज़ार साब की कलम दो धारी तलवार :)

और सबसे बड़ा जादू जो हमेशा सबको चकित करता है वो है फिल्म लेकिन का गीत-यारा सीलि सीलि....
इसके बीच एक पंक्ति आती है-
बाहर उजाड़ा हैं
अंदर वीराना
और ज़्यादातर लोग उजड़ा को उजाला ही सुनते हैं.अर्थ भी सही निकलता है.और मज़े की बात ये की वो सारे वेबसाइट जहाँ गानों के बोल लिखे मिलते हैं वो भी इसे उजाला ही लिखते हैं.

तो ये कमाल है गुलज़ार साब की कलम का.शब्दों के साथ साथ साउंड पर भी इतनी पकड़ है उनकी कि शब्दों के साथ जादू कर देते हैं.और मुझे यक़ीन है कि आपमें से भी कई इस तिलिस्म में फँस चुके होंगे. :)

This entry was posted on Wednesday, June 11, 2008 . You can leave a response and follow any responses to this entry through the Subscribe to: Post Comments (Atom) .

18 comments

"baahar 'ujaada' hai.. andar veerana"
yeh to main bhi tab tak nahi samjh saki thi jab tak aapne nahi bataya..

thanks for writing this article and letting all of us know about such minor yet important details..

liked this quote:
'गुलज़ार साब की कलम दो धारी तलवार :)'

एक गज़ल है-

है, लौ ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नूर है
मगर इसमे जलने का दस्तूर है।

अकसर लोग "हैलो" ज़िन्दगी समझते हैं :)

बहुत ही रोचकता से आपने गुलजार साहब के द्वारा इस्तेमाल शब्दों को कान से सुनने और दिल से सुनने के अंतर को निखारा है. बेहतरीन आलेख.

aap sabka dhanyawaad.

paarul ji aapke comment se yaad aaya

hai lau zindagi..ye jo ghazal hai ye ek news series aati thi hello zindagi iska title track hai.

Gulzar saab ne kuch yun likha ki title track bhi ban jaaye aur ek bahut hi achha message bhi jaaye.aur yahan bhi wahi sound ka kamaal!!

वाह पीयूष! क्या कमाल कर दिया.. छोटी छोटी बातें जिन्हे हम सुनते वक़्त तवज्जो नही देते.. तुमने उनके बारे में बताया.. बहुत बढ़िया पोस्ट.. बधाई स्वीकार करे..

बहुत अच्‍छा प्रयोग कर रहे हैं आप गुलजार जैसा कवि और शाइर शायद एक सदी में एक ही आता । जादू को अगर शब्‍दों से पैदा करने की कला सीखनी हो तो गुलजार साहब को ही सुना जाए । आप इसमें बात करें ''बूढे पहाडों पर '' की जो सुरेश वाडेकर जी का है और दिल पड़ोसी है की जो कि आशा जी और पचम दा के साथ जुगल बंदी है केवल इसलिये निकालनी पड़ी थी क्‍योंकि पंचम दा ने आंधी में आशा जी को एक भी गाना नहीं दिया था और आशा जी नाराज हो गईं थीं । बात करें मरासिम और कोई बात चले की । और हां आप ज़रूर बात करें पंचम दा और गुलजार साहब की अद्भुत केमेस्‍ट्री की क्‍योंकि मेरे विचार से ये फिल्‍म दुनिया का सबसे अद्भुत संयोग हैं

बहुत शानदार पोस्ट लिखी है आपने...वाह!

दिलचस्प तरीका है ओर तफसील से कुछ नजरियो पर नजर डाली है......गुलज़ार को पढने के बाद ही समझा जा सकता है .वैसे प्रसून जोशी भी उन जैसा ही कुछ लिखते है.

गुलज़ार साहब पर एकाग्र पूरा एक ब्लॉग देखकर दिल आनंदित हो गया. वे जीता जागता ग्रंथ हैं. एक ख़ास बात उनकी शख़्सियत में यह नज़र आती है कि वे जो भी करते हैं एक कमिटमेंट लेकर. फ़िर फ़िल्म लिखनी हो या डायरेक्ट करनी हो.धारावाहिक बनाना हो या कहानियाँ लिखना.नज़्म कहनी हो या किसी एलबम की कमेंट्री करना. उनसे सीखा जा सकता है कि वे ’होमवर्क’ के मुरीद हैं.ग्लैमर की दुनिया में काम करने के बावजूद भी वे संस्कृति,साहित्य और कविता के परिदृश्य पर सार्थक काम करते रहे हैं.फ़िल्मी दुनिया के उन चंद लोगों में से एक हैं गुलज़ार साहब जिन्हें भारतीय जनमानस और लोक-संस्कृति की लाजवाब पकड़ है. गुलज़ार साहब से मुलाक़ात का ये सफ़र बहुत ख़ुशबूदार रहेगा ऐसी दुआ करता हूँ.

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bahut khoob........ise kehte hain..SIDDAT..

kya bat hai..padh kkar shabdo ke importance ka ehsas hua...

Bohot baareeki se suna aur samjha hai aapne....yakeenan kai baar is jaal mein khud phanse hain ham bhi........bohot khoob....gulzar sahb ka to jawab hai hi nahi

बहुत ही सुंदर ढंग से आपने इस को बताया है ..सच में उनकी कलम का जादू कुछ ऐसा ही है जो ख़ुद में समेट लेता है

जी सही बात तिलिस्म में कई बार फंसा जा चुका है...
वैसे..जहा तक मेरी जानकारी है..कभी कभी गीतों के बोल पर muzik चढाये जातें है और कभी muzik पे गीत के बोल...और आज कल उल्टा प्रचन है...'muzik' पर गीत के बोल चढाने का...
और गुलज़ार साब दोनों चीजों के जादूगर हैं.....इसलिए ही शायद बस वही ऐसा जादू उत्पन्न कर सकतें हैं..
पियूष जी बधाई के पात्र हैं इतना बढ़िया लेख लिखने के...और उम्मीद है...भविष्य में ये और भी बेहतर होगा..
@Dr Anurag

ji sahi baat :)

Love ..Masto...

Jo kahi na ho woh aksar nazar aati hai
tere safhon me shafa hai jo dil khali kar de.......

Sirf Gulzar Saheb ke liye.

Jab bhi padhta hun tumhe rooh panno pe nazar aati hai
tere jumlon ne mujhe panna hone ki baghawat de di.

Kaise sunta koi mujhko maine sirf likkha tha
aaj awaz hun maine tujhe odh liya.......


I am always be greatful to you, coz I could realize yes I am alive


Somanshu Yadav

Piyush,

Kabhi kuchh Original bhi likho to mazaa aaye..

http://groups.yahoo.com/group/gulzarfans/message/3747

http://groups.yahoo.com/group/gulzarfans/message/5720

अच्छी एनालिसिस है दोस्त.. पता है बहुत पुरानी है ..लेकिन है तो पीयूष भाई की न.. :)

मज़ा आ गया..

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