गुलजार लफ्जों को कुछ इस तरह से बुन देते हैं कि दिल की तह तक वह लफ्ज़ पहुँच जाते हैं .मानसून को कुछ इस तरह से उन्होंने लफ्जों में बरसाया है ..मानसून वैसे ही आँख मिचोली खेल रहा है शायद गुलजार के लफ्जों से कुछ राहत मिले :)
बारिश आती है तो पानी को भी लग जाते हैं पांव ,
दरो -दीवार से टकरा कर गुजरता है गली से
और उछलता है छपाकों में ,
किसी मैच में जीते हुए लड़को की तरह !
जीत कर आते हैं जब मैच गली के लड़के
जुटे पहने हुए कैनवस के ,
उछलते हुए गेंदों की तरह ,
दरो -दीवार से टकरा के गुजरते हैं
वो पानी के छपाकों की तरह !
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on Friday, July 04, 2008
and is filed under
नज़्म
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tabhi to ve gulzar hai...
waah meri fav poem
गुलज़ार साहब की तो हर बात में एक बात है..
bhut sundar.
kisko kisse compare kiya hai!! khayal ki soch par hee dil aa gaya! pahli baar padhi . Shukriya shar ekarne ke liye..
wah behat reen post
अजी गुलजार जी की क्या कहे। उनकी तो बात ही निराली हैं। उनकी बात और उनकी आवाज दोनो मिल जाऐ तो वह वक्त स्वर्ग से भी प्यारा है।
gulzar ji ki kavitaon me bhi khusboo basi rahti hai. shabdon ko bhawnatmaka roop dena koe inse seekhe. isiliye to gulzar ek hi hai....
गुलजार को पढ़ना और सुनना दोनों सुकून देता है।
गुलजार साहब के नजम एक बेजान सी चीज को भी बोलना हँसना रोना सिखा देते है
gulzar.bat niklegi to dur talak jayegiआप realy great हो
gulzar.bat niklegi to dur talak jayegiआप realy great हो