गुलजार के लफ्जों में मानसून ..  

Posted by: रंजू भाटिया in




गुलजार लफ्जों को कुछ इस तरह से बुन देते हैं कि दिल की तह तक वह लफ्ज़ पहुँच जाते हैं .मानसून को कुछ इस तरह से उन्होंने लफ्जों में बरसाया है ..मानसून वैसे ही आँख मिचोली खेल रहा है शायद गुलजार के लफ्जों से कुछ राहत मिले :)


बारिश आती है तो पानी को भी लग जाते हैं पांव ,
दरो -दीवार से टकरा कर गुजरता है गली से
और उछलता है छपाकों में ,
किसी मैच में जीते हुए लड़को की तरह !

जीत कर आते हैं जब मैच गली के लड़के
जुटे पहने हुए कैनवस के ,
उछलते हुए गेंदों की तरह ,
दरो -दीवार से टकरा के गुजरते हैं
वो पानी के छपाकों की तरह !

This entry was posted on Friday, July 04, 2008 and is filed under . You can leave a response and follow any responses to this entry through the Subscribe to: Post Comments (Atom) .

12 comments

गुलज़ार साहब की तो हर बात में एक बात है..

kisko kisse compare kiya hai!! khayal ki soch par hee dil aa gaya! pahli baar padhi . Shukriya shar ekarne ke liye..

अजी गुलजार जी की क्या कहे। उनकी तो बात ही निराली हैं। उनकी बात और उनकी आवाज दोनो मिल जाऐ तो वह वक्त स्वर्ग से भी प्यारा है।

gulzar ji ki kavitaon me bhi khusboo basi rahti hai. shabdon ko bhawnatmaka roop dena koe inse seekhe. isiliye to gulzar ek hi hai....

गुलजार को पढ़ना और सुनना दोनों सुकून देता है।

गुलजार साहब के नजम एक बेजान सी चीज को भी बोलना हँसना रोना सिखा देते है

gulzar.bat niklegi to dur talak jayegiआप realy great हो

gulzar.bat niklegi to dur talak jayegiआप realy great हो

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