""कुछ और नज्में ""गुलजार जी की किताब का एक परिचय ..  

Posted by: रंजू भाटिया

गुलजार नामा ...यहाँ बात हो रही उस शख्स की जिसका लिखा हर लफ्ज़ लोगो के दिलों में उतर कर बस जाता है ..उनके बारे में एक लेख में मैंने अपने ब्लॉग में लिखा ..यह अब उस से आगे की कड़ी मान ले ..आज यहाँ बात करते हैं उनकी लिखी नज्मों की जो उन्ही की लिखी कुछ और नज्मे नामक किताब से हैं .इस से पहले उनकी एक किताब आई थी एक बूंद चाँद यह किताब वह कहते हैं कि उस से आगे की कड़ी है ..इस किताब में उन्होंने अपनी लिखे को जो नाम दिए हैं वह .. ऊला., सानी ,दस्तखत ,खाके .लम्बी नज्मे और त्रिवेणी
ऊला ,सानी लिया गया है उर्दू की जुबान से यह लिखे गए शेर के दो मिसरे होते हैं जिस में पहले मिसरे को ऊला जो अपनी बात कहता है पर पूरा होता है सानी पर .. उन्ही के लफ्जों में ..इस किताब में ऊला की नज्मे उन मिसरों की तरह है जो अपने दूसरे हिस्से को तलाश करती नज़र आती है ..पर इसको देखने का नजरिया सबका अलग अलग हो सकता है .
दस्तखत हिस्से में उनकी निजी ज़िंदगी से जुड़ी हुई नज्में हैं ..खाके में जो लिखा गया है वह एक पेंटिंग ,पोट्रेट और कुछ कुछ लेंड स्केप की तरह है और उनकी लिखी त्रिवेणी के बारे में कौन नही जानता जिसके पहले दो मिसरे एक शेर की लगते हैं पर तीसरा मिसरा लगते ही उसके मायने बदल जाते हैं ..जैसे ..

इतने लोगो में ,कह दो आंखो को
इतना ऊँचा न ऐसे बोला करे

लोग मेरा नाम जान जाते हैं !!

अब इतने कम लफ्जों में इस से ज्यादा खूबसूरत बात गुलजार जी के अलावा कौन लिख सकता है ...ज़िंदगी के हर रंग को छुआ है उन्होंने अपनी कही नज्मों में गीतों में ...कुदरत के दिए हर रंग को उन्होंने इस तरह अपनी कलम से कागज में उतारा है जो हर किसी को अपना कहा और दिल के करीब लगता है इतना कुदरत से जुडाव बहुत कम रचना कार कर पाये हैं फिल्मों में भी और साहित्य में भी ..उनकी एक नज्म आज ऊला से ..

मैं कायनात में स्ययारों में भटकता था
धुएँ में धूल में उलझी हुई किरण की तरह
मैं इस जमीं पे भटकता रहा हूँ सदियों तक
गिरा है वक्त से कट कर जो लम्हा .उसकी तरह
वतन मिला तो गली के लिए भटकता रहा
गली में घर का निशाँ तलाश करता रहा बरसों
तुम्हारी रूह में अब ,जिस्म में भटकता हूँ

लबों से चूम लो आंखो से थाम लो मुझको
तुम्हारी कोख से जनमू तो फ़िर पनाह मिले ..

This entry was posted on Wednesday, June 11, 2008 . You can leave a response and follow any responses to this entry through the Subscribe to: Post Comments (Atom) .

5 comments

kaafi dilchasp parichay..kitaab ka..
aur jigyasa badhaata hai.kitaab padhne ke liye..

yeh parichay dene ke liey shukriya..

बहुत ही खूबसूरत नज़्म रंजू जी.. शुक्रिया आपका इतनी बढ़िया पोस्ट के लिए..

स्वागत है इस बेहतरीन और उम्दा ब्लॉग का.

mazedar...achha laga padh kar...
naya tarika

keep it up

Wah bhai wah maja aa gaya!!!

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