हनीमून ..  

Posted by: रंजू भाटिया in ,

कल तुझे सैर करवाएंगे समन्दर से लगी गोल सड़क की
रात को हार सा लगता है समन्दर के गले में !

घोड़ा गाडी पे बहुत दूर तलक सैर करेंगे
धोडों की टापों से लगता है कि कुछ देर के राजा है हम !

गेटवे ऑफ इंडिया पे देखेंगे हम ताज महल होटल
जोड़े आते हैं विलायत से हनीमून मनाने ,
तो ठहरते हैं यही पर !

आज की रात तो फुटपाथ पे ईंट रख कर ,
गर्म कर लेते हैं बिरयानी जो ईरानी के होटल से मिली है
और इस रात मना लेंगे "हनीमून" यहीं जीने के नीचे !

सादगी और अपनी ही भाषा में यूँ सरलता से हर बात कह देते हैं गुलजार कि लगता है कोई अपनी ही बात कर
रहा है ..उनकी यह लेखन की सादगी जैसे रूह को छू लेती है ..गुलजार का लिखा आम इंसान का लिखा है सोचा है ..गेट वे ऑफ़ इंडिया पर देखेंगे ताजमहल ...सीधा सा कहना एक सपना आँखों में बुन देता है ..जिस सहजता से वे कहते हैं—‘बहुत बार सोचा यह सिंदूरी रोगन/जहाँ पे खड़ा हूँ/वहीं पे बिछा दूं/यह सूरज के ज़र्रे ज़मीं पर मिले तो/इक और आसमाँ इस ज़मीं पे बिछा दूँ/जहाँ पे मिले, वह जहाँ, जा रहा हूँ/मैं लाने वहीं आसमाँ जा रहा हूँ।’ उसी सरलता से अपनी बात को जाहिर इन पंक्तियों में कर दिया है वही सादगी इस कविता में लगी ..

This entry was posted on Thursday, March 12, 2009 and is filed under , . You can leave a response and follow any responses to this entry through the Subscribe to: Post Comments (Atom) .

30 comments

इस भाव से सुन्दर और और कुछ हो ही नहीं सकता है.

बहुत खूब.. इसे सादगी कहें.. या सादगी के सफेद पोश में लिपटी हुई गहराई...

क्‍या कहें ... कहने को शब्‍द नहीं।

कुछ बोलने लायक ही नही रक्खा ।
very beautiful .

अद्भुत सी। दिल खुश हो गया।

बहुत सुंदर! कवि मन जीवन की ही बात करता है।

आपको बता दूं रंजू जी कि बचपन से हीं, जब मुझे गाने कम हीं समझ में आते थे, न जाने क्यूँ गुलज़ार के लिखे गाने मुझे बहुत भाते थे. ये अलग बात है कि मैं सिर्फ बड़े होने पे हीं जान पाया कि जो गाने मुझे भाते थे उनमें से अधिकतर गुलज़ार साब के लिखे हुए थे, तब से गुलज़ार और उनसे ताल्लुक रखने वाले लोग मुझे बहुत भाते हैं.

shayad gulzar sahab ki yahi sadgi hai jo unhe tamaam shaayaron ki bheed mein juda karti hai.. kisi ne kaha hai.. aap sabne suna hoga..

it is so simple to be happy but it is so difficult to be simple..

apne dono hi naamo me pure -
Gulzaar bhi
aur Sampuran bhi.

रंजना जी,
गुलज़ार जी का कौन मुरीद नही होगा?
आप को बहुत बहुत बधाई कि आप ने उन
पर ये ब्लाग बनाया।मैं एक बार अपनी ग़ज़लों
पर गुलज़ार जी का विचार जानना चाहता हूँ,क्या
यह सम्भव है?
हर रविवार को नई ग़ज़ल अपने ब्लाग पर
डालता हूँ।मुझे यकीन है कि आप को जरूर
पसंद आयेंगे....

गुलजार लेखनी कोई जादू है........बहुत बहुत शुक्रिया

गुलजार वाकई गुलजार हैं।

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SBAI TSALIIM

itna behatreen blog aajkal sust kyon hai...gulzar ji ke upar jitna likha jaaye kam hi hai...

गुलजार अपने समय चंद लाजवाब शायरों में से हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

sampuran singh kalra
guljar ji ka asli naam . sachmuch apne aap me sampurn hai guljaar ji .
bahut badhai ho !
dil khush kr dene ke liye

आपने बिलकुल सही कहा

ब्लाॅग बनाने के लिए आपने जिस खुबसूरत शायर को चुना है यही वजह है कि आपका ब्लाॅग खूबसूरत बने बिना नहीं रह सका। माफी बक्शें सुझाव देने की एक गलत आदत पाल रखी है सो एक सुझाव देना था,ब्लाॅग को और खूबसूरत बनाने के लिए चित्रों - स्कैचेज का स्तेमाल करें।
एक शायरी पसन्द, दूर पहाड़ों में बैठा इंसान............. रोहित जोशी, गंगोलीहाट, पिथौरागढ़, उत्तराखण्ड

आज की रात तो फुटपाथ पे ईंट रख कर ,
गर्म कर लेते हैं बिरयानी जो ईरानी के होटल से मिली है
और इस रात मना लेंगे "हनीमून" यहीं जीने के नीचे !
.... फ़ुट्पाथ पर ईंट रखकर बिरयानी गरम करना...जीने के नीचे हनीमून मनाने....हालात के अनुरूप जिंदगी के पलों का भावपूर्ण चित्रण बेहद प्रभावशाली है!!!

koi vikalp nahi hai gulzaar ji ka...

आनंद आ गया, गुलज़ार को सुनकर सदैव ही सभी का दिल गुलज़ार हो जाता है. :)
एक बेहतरीन प्रस्तुति,
धन्यवाद.

Bahut Sundar, Guljaar shahab ko shat shat Naman!

Dev Palmistry

https://uniquefeelingsofmine.blogspot.com/2022/06/husn.html?m=1

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