ऐसे मौके मैं अक्सर खोजता रहता हू जब गुलज़ार साहब किसी मंच पर नज़र आ जाए.. ये वीडियो भी बस कही से हाथ लगा तो सोचा यहा शेयर किया जाए.. गुलज़ार साहब खुद अपनी ही लिखी त्रिवेणिया अपनी आवाज़ में सुना रहे है.. साथ ही त्रिवेणी क्या है सुनिए खुद गुलज़ार साहब के शब्दो में....
और गुलज़ार साहब की ये त्रिवेणी मेरे दिल के बहुत करीब है.. देखिए कितनी शिद्दत से बात कही गयी है.. एक भूखे इंसान की बात जिसे चाँद में भी रोटी नज़र आती है.. एक त्रिवेणी में इतनी बड़ी बात गुलज़ार साहब ही कह सकते है
मां ने जिस चांद सी दुल्हन की दुआ दी थी मुझे
आज की रात वह फ़ुटपाथ से देखा मैंने
रात भर रोटी नज़र आया है वो चांद मुझे
चाँद गुलज़ार साहब का पसंदीदा शब्द है.. खैर ये त्रिवेणिया जिस किताब में प्रकाशित हुई थी उस किताब का नाम ही 'रात चाँद और में' था.. तो उस में चाँद की ही बातें होगी.. अगली त्रिवेणी में भी रात और चाँद की बात ही कही गयी है.
सारा दिन बैठा,मैं हाथ में लेकर खा़ली कासा
रात जो गुज़री,चांद की कौड़ी डाल गई उसमें
सूदखो़र सूरज कल मुझसे ये भी ले जायेगा।
मानवीय रिश्तो पर गुलज़ार साहब की पकड़ बहुत ही बढ़िया है.. उनकी फिल्म इज़ाज़त ही देख लीजिए.. इस त्रिवेणी में भी रिश्तो की बात कही गयी है आख़िरी लाइन की मासूमियत देखिएगा.. ऐसी बातें ना जाने कहा से छांट छांट के लाते है गुलज़ार साहब..
सामने आये मेरे,देखा मुझे,बात भी की
मुस्कराए भी,पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर
कल का अख़बार था,बस देख लिया,रख भी दिया।
आख़िरी लाइन का रौब अगली त्रिवेणी में भी बरकरार है.. ज़रा गौर फरमाइए
शोला सा गुज़रता है मेरे जिस्म से होकर
किस लौ से उतारा है खुदावंद ने तुम को
तिनकों का मेरा घर है,कभी आओ तो क्या हो?
गुलज़ार साहब की एक नज़्म है.. इक ज़रा छींक ही दो तुम.. बड़ी मासूमियत से भगवान से बात की है उन्होने और इस त्रिवेणी में देखी.. खुदा से किस तरह फ़ार्मा रहे है गुलज़ार साहब
ज़मीं भी उसकी,ज़मी की नेमतें उसकी
ये सब उसी का है,घर भी,ये घर के बंदे भी
खुदा से कहिये,कभी वो भी अपने घर आयें!
आज के लिए इतनी त्रिवेणिया काफ़ी है.. आगे और है.. इन्तेज़ार कीजिएगा.....